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द गर्ल इन रूम 105

कॉलर्ड स्पोर्ट्स टी-शर्ट्स और व्हाइट कॉटन शॉर्ट्स शाम को आर्मी के अफ़सर लोग यही पहनते हैं,' सौरभ ने कहा।

हम अर्जुन बिहार के एंट्रेंस पर गार्ड पोस्ट के सामने खड़े थे। हमने अर्जुन बिहार के बाहरी दायरे को पूरा माप लिया था। इस आर्मी कॉलोनी में बीस के आसपास अपार्टमेंट टॉवर थे, जो धौलाकुआं के पास थे। हम चंद घंटों तक मुख्य द्वार पर स्थित सिक्योरिटी चेकपोस्ट पर नज़र जमाए रहे। शाम को कॉलोनी में पैदल चलने वालों की बहुत भीड़ रहती थी। सिक्योरिटी गार्ड्स बिना किसी खास जांच के उन्हें भीतर जाने देते थे। और अगर शाम के कपड़े पहनकर कोई आर्मी अफसर बहुत कॉन्फिडेंस से चल रहा होता तो गार्ड तो उसकी तरफ देखते भी नहीं थे। महिलाएं और बच्चे बिना किसी मुश्किल के आ-जा रहे थे। समस्या केवल उन लोगों को हो रही थी, जो दिखने में ही फ़ौजी जैसे नहीं लगते थे। उन्हें सिक्योरिटी गेट पर रोककर उनसे पूछताछ की जाती थी। 'चलो, सही कपड़े पहनकर आते हैं, ' मैंने कहा।

तीन दिन बाद, मैं और सौरभ एक बार फिर अर्जुन बिहार के मुख्य द्वार पर थे। हम अलग-अलग दिशाओं से पर एक ही समय आए थे। हम दोनों ने दूसरे अफसरों जैसे ही कपड़े पहन रखे थे— कॉलर्ड टी-शर्ट और सफ़ेद शॉर्ट्स।

'गुड ईवनिंग, सर। आपको देखकर अच्छा लगा, मैंने कहा। हमने तय कर लिया था कि चूंकि सौरभ दिखने में भारी-भरकम था, इसलिए उसे सीनियर का रोल करना पड़ेगा। व्हॉट टाइमिंग, यंग मैन तुम्हें यहां देखकर अच्छा लगा, सौरभ ने ब्रिटिश लहजे की अटपटी अंग्रेजी बोलते

हुए कहा। साथ ही वह मेरी पीठ पर जोर से धौल जमा रहा था, जो कि उसके हिसाब से हर आर्मी कमांडर करता था। ।

'बस अभी-अभी अपनी ईवनिंग वॉक खत्म की है, ' मैंने कहा 'कम, यंग मैन मेरे घर चलो, चाय पिलवाता हूं,' सौरभ ने कहा ।

मुझे लगा हम कुछ ज्यादा ही ड्रामा कर रहे थे, जबकि गार्ड तो हमें देख भी नहीं रहा था।

हम अर्जुन बिहार में चले आए और सेंट्रल गार्डन की ओर जाने लगे। इस पब्लिक गार्डन के इर्द-गिर्द ही रेजिडेंशियल टॉवर थे।

'अब हम फैज़ का घर कैसे ढूंढे?" सौरभ ने कहा । "उसने कहा था कि उसका घर ग्राउंड फ्लोर पर है।"

'लेकिन यहां तो बहुत सारे ग्राउंड फ्लोर फ़्लैट्स हैं।' "बीस टॉवर्स हर टॉवर में दो ग्राउंड फ्लोर फ़्लैट्स ।'

"एक-एक को देखने में तो बहुत समय लग जाएगा। हमें किसी से पूछ लेना चाहिए, सौरभ ने कहा। "नहीं, ऐसा करना ठीक नहीं होगा। चलो थोड़ी चहलकदमी करते हैं और जितनी नेमप्लेट्स हम पढ़ सकते हैं. पढ़ने की कोशिश करते हैं।'

हम सेंट्रल पार्क से सटकर चल रहे थे। जिन घरों में बत्तियां जल रही थीं, उन्हें इग्नोर करते हुए। 'मेजर यादव, नहीं यह घर नहीं है, ' मैंने कहा। "कैप्टन अहलूवालिया, नहीं, यह भी नहीं, सौरभ ने कहा ।

पंद्रह मिनट बाद हम आठवें टॉवर के एक ग्राउंड फ्लोर घर से होकर गुजरे। घर में अंधेरा था। ना ही उस पर कोई नेमप्लेट लगी थी। लेकिन उस पर एरेबिक कैलिग्राफी में एक सर्कुलर साइन ज़रूर था। "मुझे पता है इसका मतलब क्या होता है। अल्लाहो अकबर यानी गॉड इज ग्रेट। जारा के पास ऐसा ही एक

पेडेंट था, मैंने कहा। "तो यह किसी मुस्लिम का घर है,' सौरभ ने कहा। मैंने आसपास देखा। हमारे इर्द-गिर्द कोई भी नहीं था। हम अपार्टमेंट एंड्रेस के पास चले गए। मैंने फ्लैट के

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